Monday, November 3, 2008

एक पल

कभी कभी ढूंढता है वो उसे,
काली रात में और कभी तेज़ धुप में,
वो जो अटका है समुन्दर के किनारे पे,
किसी पत्थर ने रोक रखा है अपने मजबूत पंजों में,
वो एक पल खुशियों की परछाई का...

कभी कभी ढूंढता है वो उसे,
कहानियो की मोटी किताबों में,
उनमें लिखे छोटी छोटी कहानियो में,
और उन कहानियो में खेलती यादों में,
वो एक खामोश पल मुस्कुराहटों का...

कभी कभी ढूंढता है वो उसे,
बालकनी के बाहर क्षितिज में,
पेडों से लिपटी बेलों में,
और उनपे चहकती चिडयों में,
वो एक अनजान पल सुकून का...

बावरा मन ना जाने क्यों भटकता है,
उस एक पल के लिए, उस एक एहसास के लिए,
वो जो बैठा है मेज के कोने पे, वो जो रुका है उस मोड़ पे,
वो जो बचपन में साथ साथ दौड़ता था,
मुझे हर ठोकड़ से बचाने के लिए ,
वो एक अदभुत् पल जो बरसों से दूर बैठा है,
वो एक पल जिंदगी का...