लंबी खामोशी और लम्बा रास्ता
पग्दंदियों के साथ-साथ चलता वो नदी का किनारा ,
थक कर बैठे वो जाने-पहचाने अजनबी
बुड्ढे पेड़ कि छाओं में चलती तेज़ साँसे
बहुत सालों से जानता है वो हमें ,
मैंने यादों के सूखे पत्ते तोड़ना शुरू किया
उसने भी लम्हों कि मुरझाई फूलों कि पत्तियां तोडी
आंखों ने पत्तियों और फूलों को गीला किया
वक़्त गुजरता गया और सब बिखर गए,
रात कि सर्दी में जब सब सुख गए
तब हमने रिश्तों का आलाव जलाया
और सुबह कि रौशनी में सब भूल कर
कह दिया "अलविदा "....
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