कुछ तेज़ कदम, कुछ सुस्त कदम से वो चला जा रहा था अपनी धुन में। भीड़ में अकेला, तनहा और अनजान। तभी गली के उस मोड़ पे वो दिख गयी। वो अपने दुपट्टे के कोने को चबा रही थी । ना जाने क्यों उसे ऐसा लग रहा था कि उसे देख कर वो शर्मा रही थी और अपने होंठों से तबस्सुम को चबा रही थी। उसकी ख़ुशी भी आज बेचैन सी लग रही थी । उसकी तलाश में ही तो ना जाने कितने दिनों से वो भटक रहा था।
दौड़ता हुआ,भागता हुआ वो वहाँ पहुँचता है । देखा तो कोई नही है। उस मोड़ पे एक नुक्कड़ था वो भी सुना हो गया है। कुछ राख गिरे थे और उनपे कुछ क़दमों के निशाँ रह गए थे। उसने आज भी उससे मुँह मोड़ लिया । शायद उसे उसकी बाहों में घुटन होती है। अपने दाहिने ओर देखा तो नुक्कड़ कि सबसे पुराणी दुकान नज़र आयी जो बूढी हो चुकी थी । ना जाने कितने सपनों को जलते हुए देखा है उसने अपनी आंखों के सामने।
"बाबा एक cigarette देना "
Cigarette जला कर वो आगे निकल गया..... सुनसान सड़कों पे, धुआं और वो , दोनों अपनी-अपनी मंजील ढूँढ रहे थे। चलते-चलते वो उस जगह आ कर बैठ गया जहाँ उसे छूने वाली ना तो कोई परछाई होती है ना तो शहर कि भीड़-भाड़ । तालाब का वो किनारा जहाँ पानी में बनते बिगड़ते आकार, पानी के अन्दर के बचपने को दिखाता है। वो बच्चा जो ना झंझावात समझता है ना खामोशी , वो बच्चा जिसे ना मौत का खौफ है ना जिंदगी से ग़ुस्सा। क्योंकि उसे पता है कि मौत में जिंदगी नही होती और जिंदगी तो उसकी अपनी है।
वहाँ बैठे बैठे वो सोच रहा था, वो जो धुंध , वो जो परछाई जिसके पीछे वो भाग रहा था वही तो "जिंदगी" है और उसे पाने के लिए, उसे जीने के लिए , वो पागलों कि तरह उसके पीछे भागता है और वो उससे दूर भागती है।
वो बेगाना, जिसका ना कोई ठिकाना है और ना ही रास्ते कि धुंध हलकी होती नज़र आती है। सुकून कि तलाश में पेड कि छाओं को ढूँढता है और धुप में जलने को भटकता है । इस भटके हुए राही को क्या पता कि वो, जिसकी तलाश में वो फक्कड़ बन के घूमता है वो उसकी है। वो उसके पास ही कहीँ है ।
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