Thursday, September 20, 2007

खवाब, दोस्ती etc

" शाही जी , एक कप चाय मिलेगी ?"
"हाँ हाँ बाबु , जरूर पर 5 मिनट इंतज़ार करना होगा । अभी अभी चूल्हा जलाया है ,थोडा लौ आ जाने दो"
"ठीक है "
इतना कह कर वो सामने रखी बेंच पर बैठ गया ।
"माचिस है क्या , शाही जी, cigarette जलाने के liye ?"
"ये लो बाबु "
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"शाही जी , ६ चाय ..गरमा गरम , आज बहुत ठंढ है "
"हाँ बाबु , अभी बनाते हैं "
"आपको ठंढ नही लगती ? आपने सिर्फ एक चादर ओढ़ रखा है "
"लगती है पर क्या करें बाबु , कुछ पैसे थे बिटिया के गौअना में खर्च हो गए "
"आपलोग जब कमाने लगेंगे तब आपसे बख्सिश लेंगे "
"जरूर , शाही जी "

"हाँ तो भाई लोग आज क्या करें ?"
"अबे आज "हवा बाबा" और मयंक मिलकर राहुल का interview लेंगे "
"और सुमित और अशित note करेंगे कि कहॉ सही है और कहॉ गलत "
"भाई लोग , ज्यादा band मत बजाना "
"अबे राहुल , तू tension मत ले . You need to face these for preparation."
"ये देखो Lieutenant साहब ने दिखाई अपनी QLQs (Officer Like Qualities)"

"अबे यार शाही जी के यहाँ के चाय "the best" होती है "
"हाँ यार और इसके साथ 'छोटी Gold Flake' तो बस पूछो मत "
"चाय repeat कर दे ?"
"हाँ यार , मस्त ठंढ है आजकल "
"अबे अभी तो मयंक के घर पे भी जाना है "
"हाँ यार, आंटी ने कुछ ना कुछ खाने को बनाया होगा "
"अबे यार , थोडा उधर खिसक "
"क्यों ?"
"अबे मेरे घर कि खिड़की खुली दिख रही है "
"अबे ये तो पीयूष हो गया है , उसके पापा 2 km दूर भी होते थे तो उसे दिख जाता था "

"देख भाई , सब के सब promise कर कि जब हम सब कुछ बन जायेंगे तो शाही जी के लिए कुछ ना कुछ जरूर करेंगे "
"बिल्कुल "
"हवा बाबा कि जय " "हवा बाबा कि जय " "हवा बाबा कि जय "
"अबे वो देख "चुक्का " आ रहा है "
"देखना आते ही साथ मस्त सा अंग्रेजी का line बोलेगा "
"Hey guys, wassup? Can i have the privilege to join this elite company?"
"yaaaaaa sure"
सब के एक साथ जोड़ से हंसने कि आवाज़ आती है ।
"अबे प्रशांत , धीरे हंस वर्ना तेरी हंसी सुन कर सामने से Inspector आ जाएगा "
"अबे डरता क्यों है , Lieutenant साहब हैं ना "
सब एक साथ फिर से हंसने लगते हैं ....
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"बाबु , ये लीजिये चाय "
"आपके बाक़ी के दोस्त कहॉ हैं आजकल ?"
"सब अपने अपने job में मस्त हैं "
"कुछ मुम्बई में , कुछ पुणे में "
"एक और आते थे छोटे - छोटे , जो Army में थे "
"हाँ वो आजकल जम्मू में है "

यही वो जगह है जहाँ हमनें ना जाने कितनी शाम हँसते खेलते बितायी है । ये जगह हमारे लिए "Coaching centre" भी था "मस्ती centre" भी था और "Timepass centre" भी था । आज भी वो bench वहीँ है । शाही जी का ढाबा जैसे का तैसा है । कुछ भी तो नही बदला । वही ढाबे के सामने को खुलती हुई प्रशांत के room कि खिड़की ,वही University arts block के सामने का सन्नाटा । शाही जीं के ढाबे में जलती हुई पीली रौशनी का bulb।
बदली है तो बस वहाँ कि शाम , जहाँ कभी उन punters के हंसी कि आवाज़ गूंजती थी । जहाँ कभी वो punters अपने सपने बुनते थे । (आजतक शायद , उनके घरवालों को भी नही पता कि वो सब शाम 5 से रात के 9 बजे तक कहॉ होते थे ) शाही जी और बूढ़े हो चले हैं पर उन्हें हम सब के चेहरे याद हैं । वो चेहरे जो दुनिया के भीड़ में अपनी अलग पहचान बनाने के लिए सरदी कि धुप और गरमी कि रात भूल चुके हैं ।

"बाबु , बाक़ी लोग अब मुज़फ़्फ़रपुर नही आते क्या ?"
"आते हैं शाही जी , पर एक दो दिन ही रूक पाते हैं "
"वैसे देखिए इस दिवाली पे हम सब plan कर रहे हैं एक साथ यहाँ आने का "
"चाय पीने जरूर आइयेगा , आप सबको एक साथ देखकर ख़ुशी होगी "
"जरूर , शाही जी.... "

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